आखिर वही हुआ जिसका डर था .... मैंने अपने २० सितम्बर २००९ के आलेख
(यहाँ पढें) में जो लिखा था आखिरकार वो सच हो ही गया, न आपने और न ही उन तथाकथित नेताओं ने मेरी बात पर ध्यान दिया और वो सब हुआ जो नहीं होना चाहिए था। MACP लागू हो गयी और जैसा कि मैंने बताया था, किसी को भी विशेष फायदा नहीं हुआ बल्कि और कई नए कोम्प्लिकेशंस भी पैदा हो गए हैं।
अब नेता लोग उस चीज के लिए तैयार हो रहे हैं जिसके लिए पहले कभी नहीं थे। EA और SEA का मर्जर!
वर्षों से हम सब यह मांग करते आये हैं कि SEA और AE तथा EA (नए और पुराने दोनों ही) और SrTech का मर्जर होना चहिये, AE और आगे के प्रमोशन से किसी भी तरह की रोक (Qualification Bar or Any Other Bar) या बाध्यता हटनी चाहिए।
पर आज हम उस सब(EA और SEA का मर्जर) के लिए तैयार होने कि दिशा में कदम बढाने को तैयार हैं, जिसके लिए पहले कभी तैयार नहीं थे।
आप या मैं शायद तैयार न हों पर हमारे तथाकथित कर्णधार तो तैयार हैं।
इस सब का इफेक्ट हमारी उन पुरानी मांगों पर पड़ेगा जिनकी मांग हम वर्षों से करते आये हैं और संभावना तो यह है कि ये मांगें पूरी होना तो दूर की बात, उनकी मांग करना भी दूर की कौड़ी हो जायेगा ।
एक बार किसी भी प्रकार का लाभ जैसे (EA और SEA का मर्जर) लेने के बाद प्रशासन से उसे बदलवाना कोई बहुत आसान काम नहीं होता है। यह बात इन नेताओं को अच्छी तरह पता है, पर शायद चुनाव नज़दीक होने के कारण ये इन सभी मूल बातों को नज़रंदाज़ कर रहे हैं।
वास्तविक फायदा केडर रिस्ट्रक्चर से ही हो सकता है, जरुरत इस बात कि है कि उसकी (केडर रिस्ट्रक्चर) कमियों को दूर करके उसे तुरंत ही पिछली तारीख से (जो V - पे कमीशन से पहले की होनी चाहिए) लागू करवाने की सम्पूर्ण शक्ति से, पूरे मनोयोग से कोशिश की जाये, तभी MACP का और प्रमोशन का फायदा हम सभी को मिल सकेगा।
अभी भी समय है यदि वक़्त रहते नहीं चेते तो जो हाथ में है उससे भी जायेंगे। अब वक़्त आ गया है कि हम तात्कालिक लाभ के बजाय समझदारी से काम लें और दूर की सोचें और ऐसे निर्णयों को समर्थन न दें।
तो आओ हम सभी मिलकर नेताओं के लिए एक सदबुद्धि यज्ञ का प्रारम्भ करें।
मैं एक बार फिर कहता हूँ, जागो साथियों जागो... भविष्य की सोचो... आने वाले कल की सोचो... जागो दोस्तों जागो।
( आप भी अपने विचार यहाँ लिख सकते हैं। या ईमेल द्वारा भी मुझे अपने विचारों से अवगत करवा सकते हैं, परन्तु यहाँ लिखे आपके विचारों को और दूसरे लोगों को भी पड़ने का मौका मिलेगा।)
आपका अपना,
अश्विनी कुमार,
ई मेल - akvkota@gmail.com
prasar bhaarati लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
prasar bhaarati लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
शनिवार, 6 मार्च 2010
रविवार, 21 फ़रवरी 2010
राष्ट्र मंडल खेलों का प्रसारण और एच डी टी वी
दिल्ली में होने जा रहे राष्ट्रमंडल खेलों का प्रसारण, प्रसार भारती द्वारा एचडीटीवी (HDTV) याने कि हाई डेफिनिशन टेलीविजन के फार्मेट में भी होगा।
ऐसा नहीं है कि प्रसार भारती अब हाई टेक हो गयी है या होने जा रही है, यह सब मज़बूरी कि देन है, मज़बूरी इसलिए क्योंकि CWG के नियमानुसार मूल प्रसारण कर्त्ता को खेलों का इसी फॉर्मेट में प्रसारण करना जरूरी है। खैर, जो भी हो, कम से कम इसी बहाने हमारे नीतिनियंताओं को कुछ अच्छा करने के लिए मजबूर करने वाली परिस्थितियां पैदा तो हुई। ऐसा ज्ञात हुआ है कि हमारे इंजीनियरों ने इसकी तैयारी भी कर ली है।
फिलहाल इन प्रसारणों के लिए देश के चार प्रमुख शहरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता को ही चुना गया है, याने दिल्ली अभी दूर है और आपको अभी अपने टेलीविजन सेट्स बदलने की ज़रूरत नहीं होगी। वैसे भी बहु संख्यक आबादी को ध्यान में रखते हुए, शायद, अनालोग प्रसारण तो जारी रखे ही जायेंगे।
परन्तु, यहाँ पर हम इतना जरूर बताएँगे कि सामान्य टेलिविज़न (SDTV - Standard Definition TeleVision - 640 x 480) के मुकाबले HDTV की दृश्य गुणवत्ता या रिसोल्यूशन 3 गुना (1920 x 1080 pixels) तक होता है और इसके चित्रों का दृश्यानुपात 16:9 होता है जो सामान्य के 4:3 से बहुत अच्छा होता है और फिल्मों के दृश्यानुपात के समान होता है। यहाँ यह भी जानना ज़रूरी है की डिज़िटल टीवी और एचडीटीवी दोनों ही अलग-अलग विषयवस्तु हैं और इनसे भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है।
प्रसारण कर्त्ता के तौर पर यह जानना भी ज़रूरी है की इनके प्रसारण हेतु लगभग तीन गुना ज्यादा bandwidth की भी आवश्यकता होगी। इसके लिए नये संसाधन भी जुटाने की आवश्यकता पड़ेगी और इस प्रसारण को देखने के लिए उपभोक्ताओं को भी नए HDTV टेलीविजन खरीदने की ज़रूरत पड़ेगी।
यदि आप एचडीटीवी या डीटीवी के बारे के लिए ज्यादा जानना चाहते हैं तो आप हाउ-स्टफ-वर्क्स की वेब साईट http://www.howstuffworks.com/hdtv.htm पर जा सकते हैं। यहाँ आप और भी कई उपयोगी जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं, यह वेब साईट सभी के लिए बहुत ही उपयोगी है और विभिन्न उपकरणों के बारे में यहाँ जानकारी उपलब्ध है।
अश्विनी कुमार, ई मेल - akvkota@gmail.com
ऐसा नहीं है कि प्रसार भारती अब हाई टेक हो गयी है या होने जा रही है, यह सब मज़बूरी कि देन है, मज़बूरी इसलिए क्योंकि CWG के नियमानुसार मूल प्रसारण कर्त्ता को खेलों का इसी फॉर्मेट में प्रसारण करना जरूरी है। खैर, जो भी हो, कम से कम इसी बहाने हमारे नीतिनियंताओं को कुछ अच्छा करने के लिए मजबूर करने वाली परिस्थितियां पैदा तो हुई। ऐसा ज्ञात हुआ है कि हमारे इंजीनियरों ने इसकी तैयारी भी कर ली है।
फिलहाल इन प्रसारणों के लिए देश के चार प्रमुख शहरों दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता को ही चुना गया है, याने दिल्ली अभी दूर है और आपको अभी अपने टेलीविजन सेट्स बदलने की ज़रूरत नहीं होगी। वैसे भी बहु संख्यक आबादी को ध्यान में रखते हुए, शायद, अनालोग प्रसारण तो जारी रखे ही जायेंगे।
परन्तु, यहाँ पर हम इतना जरूर बताएँगे कि सामान्य टेलिविज़न (SDTV - Standard Definition TeleVision - 640 x 480) के मुकाबले HDTV की दृश्य गुणवत्ता या रिसोल्यूशन 3 गुना (1920 x 1080 pixels) तक होता है और इसके चित्रों का दृश्यानुपात 16:9 होता है जो सामान्य के 4:3 से बहुत अच्छा होता है और फिल्मों के दृश्यानुपात के समान होता है। यहाँ यह भी जानना ज़रूरी है की डिज़िटल टीवी और एचडीटीवी दोनों ही अलग-अलग विषयवस्तु हैं और इनसे भ्रमित होने की आवश्यकता नहीं है।
प्रसारण कर्त्ता के तौर पर यह जानना भी ज़रूरी है की इनके प्रसारण हेतु लगभग तीन गुना ज्यादा bandwidth की भी आवश्यकता होगी। इसके लिए नये संसाधन भी जुटाने की आवश्यकता पड़ेगी और इस प्रसारण को देखने के लिए उपभोक्ताओं को भी नए HDTV टेलीविजन खरीदने की ज़रूरत पड़ेगी।
यदि आप एचडीटीवी या डीटीवी के बारे के लिए ज्यादा जानना चाहते हैं तो आप हाउ-स्टफ-वर्क्स की वेब साईट http://www.howstuffworks.com/hdtv.htm पर जा सकते हैं। यहाँ आप और भी कई उपयोगी जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं, यह वेब साईट सभी के लिए बहुत ही उपयोगी है और विभिन्न उपकरणों के बारे में यहाँ जानकारी उपलब्ध है।
अश्विनी कुमार, ई मेल - akvkota@gmail.com
Labels:
दूरदर्शन,
प्रसारण,
हिन्दी,
aakaashwani,
air,
airdd,
america,
ashwini,
bhaarat,
dd,
India,
prasar bhaarati,
Voice ऑफ़ america
रविवार, 20 सितंबर 2009
आकाशवाणी और दूरदर्शन के कर्मचारी नेताओं की अदूरदर्शी सोच - 1
प्रिय मित्रों,
पिछले अंक ( यहाँ पढें ) में हम बात कर रहे थे हमारे यहां कार्य कर रहे कर्मचारी संगठनों की कार्यप्रणाली की, उनकी अदूरदर्शिता पूर्ण नीतियों की पर , समयाभाव के कारण चर्चा अधूरी ही रह गयी थी और हम इनकी अदूरदर्शी नीतियों के बारे में बात ही नहीं कर पाये थे।
मैं इनकी अदूरदर्शी नीतियों पर आपसे चर्चा करता, उससे पहले ही पिछले दिनों इन तथाकथित नेताओं की आपसी होड़ और अदूरदर्शिता का एक और नायाब नमूना भी देखने को मिल गया।
पद लिप्सा और क्रेडिट लेने की कोशिशों के चलते हाल ही में एमऐसीपी के नाम पर जो कुछ हुआ और हो रहा है वह वास्तव में इन तथाकथित नेताओं के निहित स्वार्थों की पराकाष्ठा को ही दर्शाता है। कुछ संगठनों के समूह टूट गए और कुछ नए बन गए और फिर बाद में कुछ एक दूसरे का सहारा भी लेते देखे गए, मूल रूप से इन संगठनो की अगुआई, हमारे इंजीनियरिंग संगठन ही कर रहे थे, पर शायद ही किसी ने यह जानने की जहमत उठाई कि आख़िर सिर्फ़ एमऐसीपी लेकर इंजीनियरिंग केडर में किसका भला होने वाला है और हमें वास्तव में हासिल क्या होगा ?
होना तो ये चाहिए था की सभी संगठन तथा नेता पहले केडर रिस्ट्रक्चरिंग (जो सैद्धांतिक रूप से करीब करीब स्वीकृत ही है) को करवाते और फिर ऐ सी पी को लागू करवाने की कोशिश उसके बाद एमएसीपी लागू करवाने की बात होती । वर्षों से यह काम इन्हीं 'महानुभावों' की वज़ह से पूर्ण नहीं हो पा रहा है, पर सोचने की फुर्सत किसे है? यहाँ तो होड़ ये मची है कि काम होने का क्रेडिट कोई और न ले उडे। जबकि सच्चाई यह है कि यह सब ( पे कमीशन) तो आगे पीछे लागू होना ही है क्योंकि यह मिनिस्ट्री का निर्णय है बस फर्क इतना ही है कि कहीं लागू जल्दी हो गया है और कहीं अब लागू होगा। प्रसार भारती में पे कमीशन लागू करवाने के बारे में भी, यहीं पर वह सच भी उजागर किया जाएगा जिसका दम ये संगठन भरते हैं पर, अभी बात चल रही है एम्ऐसीपी और केडर रिस्ट्रक्चरिंग के बारे में।
केडर रिस्ट्रक्चरिंग की बात तो हमारे ये तथाकथित नेता तब ही करेंगे जब हमारे इन संगठनों के चुनाव वापस सर पर होंगे, क्योंकि यही वह लोलीपोप है, जो चुनाव नज़दीक होने पर ये कर्मचरियों को उसी तरह थमा देते हैं, जैसे हमारी चुनी हुई सरकारें हर चुनाव में मंहगाई कम करने का लोलीपोप जनता को थमा देती हैं । इस कार्य से भटकाने का काम भी हमारे ही इन्जिनीरिंग केडर के दूसरे संगठन ही कर रहे हैं। वास्तव में इन नेताओं के पास हमारे उत्थान के लिए कोई नीति ही नहीं है, हो भी कैसे जब इन्हे फालतू के कामों (अपने लोगों के ट्रान्सफर ) से फुर्सत तो मिले।
केडर रिस्ट्रक्चरिंग में इंजीनियरिंग केडर में सीनियर टेक्नीशियन (Sr.Tech) एवं इऐ(EA) का तथा एसइऐ(SEA) एवं ऐइ(AE) का मर्जर प्रस्तावित है इसके अलावा प्रोमोशन चैनेल से ऐइ से सीधा एस इ की पोस्ट पर प्रोमोशन होना प्रस्तावित है , यदि केडर रिस्ट्रक्चरिंग लागू होने के बाद ऐसीपी लागू होती है, तो एम ऐ सी पी का कोई फायदा भी मिलाता । ऐसीपी लागू होने के बाद प्रोमोशन पर एक टेक्निशियन को पहले 'इऐ' और फिर 'ऐइ' की पोस्ट मिलती और अंत में वह 'एसइ' के ग्रेड तक पहुँचता। इसी प्रकार एक 'इऐ', 'एसजी इ' के ग्रेड तक पहुचने में कामयाब होता, परन्तु यह सब सोचने का समय तो आप के पास है ही नहीं, और इन तथाकथित नेताओं के पास तो बिल्कुल नहीं है, क्यों नहीं है यह मैं इस ब्लॉग के पिछले अंक ( यहाँ पढें )में बता ही चुका हूँ।
यदि आप इन्हें इस बारे में कहेंगे भी तो ये आपको कहेंगे - अरे भाई पहले जो मिल रहा है उसे तो ले लो , रिस्ट्रक्चरिंग का काम तो मुश्किल है, पता नहीं कब होगा तब तक जो हम दिलवा रहे हैं वो तो ले लो! और, हम सब मान जायेंगे, बस इस थोड़े से तात्कालिक लाभ के लिए हम सब अपने भविष्य के ताबूत में एक और कील ठोक देंगे, पता नहीं हम क्यों अपना भविष्य ख़ुद ही बरबाद करने पर तुले हुए हैं ?
आपको याद होगा नेफेड के नाम से एक संगठन जिसे मौकापरस्त नेताओं की जमात कहना ज्यादा उचित लगता है के बैनर तले आरती टी और अन्य कई संगठनों ने शुरुआत में हम लोगों के बारे में 'जी ओ एम' के डीम्ड डेपुटेशन के निर्णय पर खुशी जाहिर करते हुए तत्कालीन मंत्री महोदय को बधाई देकर फूलों का गुलदस्ता भेंट किया था। जो की इन नेताओं की दूरदर्शिता को स्पष्ट करने के लिए काफी है.
उस समय मात्र एक ही संगठन जिसका उल्लेख यहाँ जरूरी भी हो जाता है, उडी (UADEE) ने दूरदर्शिता दिखाते हुए इस निर्णय की भर्त्सना की थी। बाद में जब इन तथाकथित नेताओं को उडी द्वारा की गई इस भर्त्सना के चलते इस निर्णय के दूरगामी प्रभाव समझ में आए तो आनन फानन में गेट मीटिंग्स हुई और फिर ये दर्शाने कि कोशिश की गयी कि इन तथाकथित नेताओं कि सोच बड़ी ही दूरदर्शिता पूर्ण है। अगले अंक में मैं आपको बताऊंगा कि इस मुद्दे पर असल में क्या हुआ और यह अब किस स्थिति में है और किसके प्रयासों से है।
शायद अब आपको उस गेट मीटिंग के बाद की अगली गेट मीटिंग भी याद आ गयी होगी जिसमें इन तथाकथित नेताओं ने साहबों के विरुद्ध एक (दिखावटी) मोर्चा खोलने कि बात कि थी क्योंकि अगले वर्ष होने वाले राष्ट्र मंडल खेलों के प्रसारणों के लिए दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के बजाए बाहर के रेडियो एवं टीवी चैनलों से निविदाएँ माँगी गयी थीं, पर फ़िर हुआ क्या ? कोई नहीं बताएगा।
मैंने इसीलिए पहले ही उसे कोष्ठक में दिखावटी लिखा है, क्योंकि वह प्रदर्शन तो था ही दिखावटी, यदि ये इस मामले को लेकर वास्तव में संजीदा होते तो प्रसार भारती बोर्ड के अध्यक्ष के द्वारा इसी मुद्दे पर दिए त्यागपत्र के समर्थन में न आ जाते, पर वास्तविकता में ये सारे तथाकथित नेता प्रसार भारती के साहबों की जेब में हैं तभी तो उस मुद्दे पर अध्यक्ष महोदय के साथ खड़े होने के बजे ये सब न केवल साहबों के साथ खड़े हो गए, बल्कि अन्दर कि खबरें तो ये तक हैं कि इन तथाकथित नेताओं ने उन्हें संगठनों के लेटरहेड पर क्लीनचिट भी दे दी थी, इस प्रकार हमारे विभाग का बंटाधार करने में लगे इन साहबों को कर्मचारियों का हितेषी बताने में भी इन्हें कोई संकोच नहीं हुआ। अब तो माननीया मंत्री महोदय ने भी इन साहबों के आचरण पर तल्ख़ टिप्पणी की है ( देखें दैनिक जागरण ११ सितम्बर २००९, नई दिल्ली - प्रसार भारती बोर्ड पर गिर सकती है गाज !)
अंततः यह सुनाने में आया है की इन खेलों के प्रसारण का दायित्व दूरदर्शन को नहीं मिल पाया है, आकाशवाणी का कोई कद्दावर प्रतिद्वंदी नहीं है शायद इसलिए रेडियो के प्रसारण के अधिकार शायद आकाशवाणी के पास ही रहेंगे।
तो मित्रों, ये तो थोड़े से वे नमूने हैं जो पिछले कुछ ही दिनों में घटित हुए हैं, पर दोस्तों कहानी तो अभी शुरू ही हुई है। पर समय काफी हो चला है, अगली बार कुछ और नई बातों और इन तथाकथित कर्ता धर्ताओं की कारगुजारियों और इन की नीतियों के बारे में मैं आपसे चर्चा करूँगा।
पर तब तक के लिए मैं इतना ही कहूँगा जो आज से करीब ११६ साल पहले ११ सितम्बर १८९३ में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में कहा था.... 'उत्तिष्ठ जाग्रत भवः'।
जागो साथियों जागो... ट्रांसफर से आगे भविष्य की भी सोचो... ये जो तनख्वाह आज आपको ज़्यादा लग रही है अगले आठ सालों में ऊंट के मुंह में जीरा साबित होगी इसलिए आने वाले कल की सोचो... जागो दोस्तों जागो।
आप भी अपने विचार यहाँ लिख सकते हैं। या ईमेल द्वारा भी मुझे अपने विचारों से अवगत करवा सकते हैं, परन्तु यहाँ लिखे आपके विचारों को और दूसरे लोगों को भी पड़ने का मौका मिलेगा।
आपका अपना,
पिछले अंक ( यहाँ पढें ) में हम बात कर रहे थे हमारे यहां कार्य कर रहे कर्मचारी संगठनों की कार्यप्रणाली की, उनकी अदूरदर्शिता पूर्ण नीतियों की पर , समयाभाव के कारण चर्चा अधूरी ही रह गयी थी और हम इनकी अदूरदर्शी नीतियों के बारे में बात ही नहीं कर पाये थे।
मैं इनकी अदूरदर्शी नीतियों पर आपसे चर्चा करता, उससे पहले ही पिछले दिनों इन तथाकथित नेताओं की आपसी होड़ और अदूरदर्शिता का एक और नायाब नमूना भी देखने को मिल गया।
पद लिप्सा और क्रेडिट लेने की कोशिशों के चलते हाल ही में एमऐसीपी के नाम पर जो कुछ हुआ और हो रहा है वह वास्तव में इन तथाकथित नेताओं के निहित स्वार्थों की पराकाष्ठा को ही दर्शाता है। कुछ संगठनों के समूह टूट गए और कुछ नए बन गए और फिर बाद में कुछ एक दूसरे का सहारा भी लेते देखे गए, मूल रूप से इन संगठनो की अगुआई, हमारे इंजीनियरिंग संगठन ही कर रहे थे, पर शायद ही किसी ने यह जानने की जहमत उठाई कि आख़िर सिर्फ़ एमऐसीपी लेकर इंजीनियरिंग केडर में किसका भला होने वाला है और हमें वास्तव में हासिल क्या होगा ?
होना तो ये चाहिए था की सभी संगठन तथा नेता पहले केडर रिस्ट्रक्चरिंग (जो सैद्धांतिक रूप से करीब करीब स्वीकृत ही है) को करवाते और फिर ऐ सी पी को लागू करवाने की कोशिश उसके बाद एमएसीपी लागू करवाने की बात होती । वर्षों से यह काम इन्हीं 'महानुभावों' की वज़ह से पूर्ण नहीं हो पा रहा है, पर सोचने की फुर्सत किसे है? यहाँ तो होड़ ये मची है कि काम होने का क्रेडिट कोई और न ले उडे। जबकि सच्चाई यह है कि यह सब ( पे कमीशन) तो आगे पीछे लागू होना ही है क्योंकि यह मिनिस्ट्री का निर्णय है बस फर्क इतना ही है कि कहीं लागू जल्दी हो गया है और कहीं अब लागू होगा। प्रसार भारती में पे कमीशन लागू करवाने के बारे में भी, यहीं पर वह सच भी उजागर किया जाएगा जिसका दम ये संगठन भरते हैं पर, अभी बात चल रही है एम्ऐसीपी और केडर रिस्ट्रक्चरिंग के बारे में।
केडर रिस्ट्रक्चरिंग की बात तो हमारे ये तथाकथित नेता तब ही करेंगे जब हमारे इन संगठनों के चुनाव वापस सर पर होंगे, क्योंकि यही वह लोलीपोप है, जो चुनाव नज़दीक होने पर ये कर्मचरियों को उसी तरह थमा देते हैं, जैसे हमारी चुनी हुई सरकारें हर चुनाव में मंहगाई कम करने का लोलीपोप जनता को थमा देती हैं । इस कार्य से भटकाने का काम भी हमारे ही इन्जिनीरिंग केडर के दूसरे संगठन ही कर रहे हैं। वास्तव में इन नेताओं के पास हमारे उत्थान के लिए कोई नीति ही नहीं है, हो भी कैसे जब इन्हे फालतू के कामों (अपने लोगों के ट्रान्सफर ) से फुर्सत तो मिले।
केडर रिस्ट्रक्चरिंग में इंजीनियरिंग केडर में सीनियर टेक्नीशियन (Sr.Tech) एवं इऐ(EA) का तथा एसइऐ(SEA) एवं ऐइ(AE) का मर्जर प्रस्तावित है इसके अलावा प्रोमोशन चैनेल से ऐइ से सीधा एस इ की पोस्ट पर प्रोमोशन होना प्रस्तावित है , यदि केडर रिस्ट्रक्चरिंग लागू होने के बाद ऐसीपी लागू होती है, तो एम ऐ सी पी का कोई फायदा भी मिलाता । ऐसीपी लागू होने के बाद प्रोमोशन पर एक टेक्निशियन को पहले 'इऐ' और फिर 'ऐइ' की पोस्ट मिलती और अंत में वह 'एसइ' के ग्रेड तक पहुँचता। इसी प्रकार एक 'इऐ', 'एसजी इ' के ग्रेड तक पहुचने में कामयाब होता, परन्तु यह सब सोचने का समय तो आप के पास है ही नहीं, और इन तथाकथित नेताओं के पास तो बिल्कुल नहीं है, क्यों नहीं है यह मैं इस ब्लॉग के पिछले अंक ( यहाँ पढें )में बता ही चुका हूँ।
यदि आप इन्हें इस बारे में कहेंगे भी तो ये आपको कहेंगे - अरे भाई पहले जो मिल रहा है उसे तो ले लो , रिस्ट्रक्चरिंग का काम तो मुश्किल है, पता नहीं कब होगा तब तक जो हम दिलवा रहे हैं वो तो ले लो! और, हम सब मान जायेंगे, बस इस थोड़े से तात्कालिक लाभ के लिए हम सब अपने भविष्य के ताबूत में एक और कील ठोक देंगे, पता नहीं हम क्यों अपना भविष्य ख़ुद ही बरबाद करने पर तुले हुए हैं ?
आपको याद होगा नेफेड के नाम से एक संगठन जिसे मौकापरस्त नेताओं की जमात कहना ज्यादा उचित लगता है के बैनर तले आरती टी और अन्य कई संगठनों ने शुरुआत में हम लोगों के बारे में 'जी ओ एम' के डीम्ड डेपुटेशन के निर्णय पर खुशी जाहिर करते हुए तत्कालीन मंत्री महोदय को बधाई देकर फूलों का गुलदस्ता भेंट किया था। जो की इन नेताओं की दूरदर्शिता को स्पष्ट करने के लिए काफी है.
उस समय मात्र एक ही संगठन जिसका उल्लेख यहाँ जरूरी भी हो जाता है, उडी (UADEE) ने दूरदर्शिता दिखाते हुए इस निर्णय की भर्त्सना की थी। बाद में जब इन तथाकथित नेताओं को उडी द्वारा की गई इस भर्त्सना के चलते इस निर्णय के दूरगामी प्रभाव समझ में आए तो आनन फानन में गेट मीटिंग्स हुई और फिर ये दर्शाने कि कोशिश की गयी कि इन तथाकथित नेताओं कि सोच बड़ी ही दूरदर्शिता पूर्ण है। अगले अंक में मैं आपको बताऊंगा कि इस मुद्दे पर असल में क्या हुआ और यह अब किस स्थिति में है और किसके प्रयासों से है।
शायद अब आपको उस गेट मीटिंग के बाद की अगली गेट मीटिंग भी याद आ गयी होगी जिसमें इन तथाकथित नेताओं ने साहबों के विरुद्ध एक (दिखावटी) मोर्चा खोलने कि बात कि थी क्योंकि अगले वर्ष होने वाले राष्ट्र मंडल खेलों के प्रसारणों के लिए दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के बजाए बाहर के रेडियो एवं टीवी चैनलों से निविदाएँ माँगी गयी थीं, पर फ़िर हुआ क्या ? कोई नहीं बताएगा।
मैंने इसीलिए पहले ही उसे कोष्ठक में दिखावटी लिखा है, क्योंकि वह प्रदर्शन तो था ही दिखावटी, यदि ये इस मामले को लेकर वास्तव में संजीदा होते तो प्रसार भारती बोर्ड के अध्यक्ष के द्वारा इसी मुद्दे पर दिए त्यागपत्र के समर्थन में न आ जाते, पर वास्तविकता में ये सारे तथाकथित नेता प्रसार भारती के साहबों की जेब में हैं तभी तो उस मुद्दे पर अध्यक्ष महोदय के साथ खड़े होने के बजे ये सब न केवल साहबों के साथ खड़े हो गए, बल्कि अन्दर कि खबरें तो ये तक हैं कि इन तथाकथित नेताओं ने उन्हें संगठनों के लेटरहेड पर क्लीनचिट भी दे दी थी, इस प्रकार हमारे विभाग का बंटाधार करने में लगे इन साहबों को कर्मचारियों का हितेषी बताने में भी इन्हें कोई संकोच नहीं हुआ। अब तो माननीया मंत्री महोदय ने भी इन साहबों के आचरण पर तल्ख़ टिप्पणी की है ( देखें दैनिक जागरण ११ सितम्बर २००९, नई दिल्ली - प्रसार भारती बोर्ड पर गिर सकती है गाज !)
अंततः यह सुनाने में आया है की इन खेलों के प्रसारण का दायित्व दूरदर्शन को नहीं मिल पाया है, आकाशवाणी का कोई कद्दावर प्रतिद्वंदी नहीं है शायद इसलिए रेडियो के प्रसारण के अधिकार शायद आकाशवाणी के पास ही रहेंगे।
तो मित्रों, ये तो थोड़े से वे नमूने हैं जो पिछले कुछ ही दिनों में घटित हुए हैं, पर दोस्तों कहानी तो अभी शुरू ही हुई है। पर समय काफी हो चला है, अगली बार कुछ और नई बातों और इन तथाकथित कर्ता धर्ताओं की कारगुजारियों और इन की नीतियों के बारे में मैं आपसे चर्चा करूँगा।
पर तब तक के लिए मैं इतना ही कहूँगा जो आज से करीब ११६ साल पहले ११ सितम्बर १८९३ में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में कहा था.... 'उत्तिष्ठ जाग्रत भवः'।
जागो साथियों जागो... ट्रांसफर से आगे भविष्य की भी सोचो... ये जो तनख्वाह आज आपको ज़्यादा लग रही है अगले आठ सालों में ऊंट के मुंह में जीरा साबित होगी इसलिए आने वाले कल की सोचो... जागो दोस्तों जागो।
आप भी अपने विचार यहाँ लिख सकते हैं। या ईमेल द्वारा भी मुझे अपने विचारों से अवगत करवा सकते हैं, परन्तु यहाँ लिखे आपके विचारों को और दूसरे लोगों को भी पड़ने का मौका मिलेगा।
आपका अपना,
अश्विनी कुमार, ई मेल - akvkota@gmail.com
Labels:
एम्प्लोयीस वेलफेयर,
टीवी,
दूरदर्शन,
रेडियो,
वेलफेयर,
aakaashwani,
air,
ARTEE,
dd,
India,
prasar bhaarati
शनिवार, 29 अगस्त 2009
प्रसार भारती में कर्मचारी संगठनों की भूमिका
पिछले १० वर्षों में प्रसार भारती में मुख्य रूप से कार्यरत कर्मचारी संगठन आरती, टी, जी ई ऐ, अदासा, पीएसए आदि के तथाकथित नेताओं ने अभी तक निहित स्वार्थों के चलते कभी भी कर्मचारियों के हित में नहीं सोचा है। प्रसार भारती में कर्मचारी संगठनों के इन तथाकथित नेताओं ने कर्मचारियों के बजाए अपना ही भला करने में ज़्यादा ध्यान दिया है।
इन संगठनों के ये तथाकथित नेता ज़्यादातर अपने प्रियजनों के स्थानान्तरण को व्यवस्थित करने में ही व्यस्त रहते हैं और आम कर्मचारियों के हितों की परवाह करने का समय उनके पास बचता ही नहीं है, और जब समय मिलेगा ही नहीं तो फिर कर्मचारी हित की बात कब और किससे करेंगे, क्योंकि इनके आसपास तो उन चापलूसों की फौज इकठ्ठी है जो उनकी हाँ में हाँ मिलाने के सिवाय और कुछ करती ही नहीं! क्योंकि इन नेताओं और इनके चापलूसों का एक ही मकसद है येन-केन-प्रकारेण दिल्ली या जो जिस स्थान पर है, में बने रहना।
और तो और, सभी सगठनों ने कर्मचारियों के सामान्य एवं कॉमन विषयों जैसे जी पी एफ और वेलफेयर सम्बन्धी समस्याओं पर भी वर्षों से ध्यान नहीं दिया है।
अब जीपीएफ विभाग की बातचल ही पड़ी है तो इसी की बात करते हैं, क्योंकि, सभी समान रूप से इस विभाग के सताए हुए हैं। जीपीएफ विभाग में तो हाल ये है की एक ही लिस्ट में भेजे गए कर्मचारियों में से कई कर्मचारियों की जी पी एफ सम्बन्धी प्रविष्टियाँ ही गायब हो जाती हैं, इस बात का पता कर्मचारियों को तब चलता है जब एक या अधिक वर्ष बाद उसे स्टेटमेंट मिलता है, फिर शुरू होता है जी पी एफ ऑफिस में चक्कर लगाने का अंतहीन सिलसिला जो तब ही ख़तम होता है जब कर्मचारी जी पी एफ विभाग में अच्छी तरह से सेवा पूजा हेतु भेंट या चढावा चढा देता है या उच्च अधिकारीयों के पास चला जाता है, पर उच्चाधिकारियों के पास जाना कई बार उन्हें नई उलझनों में भी फंसा देता है। सबसे ज़्यादा परेशानी तो दूर दराज़ के इलाकों में काम करने वाले हमारे सहयोगियों को होती है।
जी पी एफ विभाग को आन लाइन करने की मांग कर्मचारियों द्वारा एक अरसे से की जा रही है पर कोई भी संगठन इस बारे में सोचना भी नहीं चाहता है। सोचे भी कैसे सोचने के लिए वक़्त चाहिए, जो फालतू काम करने में ही जाया हो जाता है, और फ़िर वैसे भी चुनाव में इन मुद्दों की बात तो होती भी नहीं है न, तो फ़िर क्यों इन 'फालतू' के कामों में अपना सर खपाया जाए।
ये तो बानगी भर है, ऐसे बीसियों मुद्ददे हैं जो सभी कर्मचारियों को समान रूप से प्रभावित करते हैं, पर उनके लिए इन तथाकथित नेताओं के पास समय ही नहीं है। ऐसे नेताओं से कर्मचारी वेलफेयर की उम्मीद करना ही बेमानी है। हाल ही में वेतन आयोग की सिफारिशों को पूरी तरह लागू करवाने में इन संगठनों का विफल रहना इनके कार्य करने के तौर तरीकों को ही दर्शाता है।
इन नेताओं द्वारा किए गए फैसले और उठाये गए कदम अधिकतर अदूरदर्शितापूर्ण ही रहे हैं। आज इन्हीं अदूरदर्शी नीतियों के चलते प्रसार भारती में कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय हो गया है।
इनकी अदूरदर्शितापूर्ण नीतियों का खुलासा अब अगले अंक में ।
-- अश्विनी कुमार
इन संगठनों के ये तथाकथित नेता ज़्यादातर अपने प्रियजनों के स्थानान्तरण को व्यवस्थित करने में ही व्यस्त रहते हैं और आम कर्मचारियों के हितों की परवाह करने का समय उनके पास बचता ही नहीं है, और जब समय मिलेगा ही नहीं तो फिर कर्मचारी हित की बात कब और किससे करेंगे, क्योंकि इनके आसपास तो उन चापलूसों की फौज इकठ्ठी है जो उनकी हाँ में हाँ मिलाने के सिवाय और कुछ करती ही नहीं! क्योंकि इन नेताओं और इनके चापलूसों का एक ही मकसद है येन-केन-प्रकारेण दिल्ली या जो जिस स्थान पर है, में बने रहना।
और तो और, सभी सगठनों ने कर्मचारियों के सामान्य एवं कॉमन विषयों जैसे जी पी एफ और वेलफेयर सम्बन्धी समस्याओं पर भी वर्षों से ध्यान नहीं दिया है।
अब जीपीएफ विभाग की बातचल ही पड़ी है तो इसी की बात करते हैं, क्योंकि, सभी समान रूप से इस विभाग के सताए हुए हैं। जीपीएफ विभाग में तो हाल ये है की एक ही लिस्ट में भेजे गए कर्मचारियों में से कई कर्मचारियों की जी पी एफ सम्बन्धी प्रविष्टियाँ ही गायब हो जाती हैं, इस बात का पता कर्मचारियों को तब चलता है जब एक या अधिक वर्ष बाद उसे स्टेटमेंट मिलता है, फिर शुरू होता है जी पी एफ ऑफिस में चक्कर लगाने का अंतहीन सिलसिला जो तब ही ख़तम होता है जब कर्मचारी जी पी एफ विभाग में अच्छी तरह से सेवा पूजा हेतु भेंट या चढावा चढा देता है या उच्च अधिकारीयों के पास चला जाता है, पर उच्चाधिकारियों के पास जाना कई बार उन्हें नई उलझनों में भी फंसा देता है। सबसे ज़्यादा परेशानी तो दूर दराज़ के इलाकों में काम करने वाले हमारे सहयोगियों को होती है।
जी पी एफ विभाग को आन लाइन करने की मांग कर्मचारियों द्वारा एक अरसे से की जा रही है पर कोई भी संगठन इस बारे में सोचना भी नहीं चाहता है। सोचे भी कैसे सोचने के लिए वक़्त चाहिए, जो फालतू काम करने में ही जाया हो जाता है, और फ़िर वैसे भी चुनाव में इन मुद्दों की बात तो होती भी नहीं है न, तो फ़िर क्यों इन 'फालतू' के कामों में अपना सर खपाया जाए।
ये तो बानगी भर है, ऐसे बीसियों मुद्ददे हैं जो सभी कर्मचारियों को समान रूप से प्रभावित करते हैं, पर उनके लिए इन तथाकथित नेताओं के पास समय ही नहीं है। ऐसे नेताओं से कर्मचारी वेलफेयर की उम्मीद करना ही बेमानी है। हाल ही में वेतन आयोग की सिफारिशों को पूरी तरह लागू करवाने में इन संगठनों का विफल रहना इनके कार्य करने के तौर तरीकों को ही दर्शाता है।
इन नेताओं द्वारा किए गए फैसले और उठाये गए कदम अधिकतर अदूरदर्शितापूर्ण ही रहे हैं। आज इन्हीं अदूरदर्शी नीतियों के चलते प्रसार भारती में कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय हो गया है।
इनकी अदूरदर्शितापूर्ण नीतियों का खुलासा अब अगले अंक में ।
-- अश्विनी कुमार
Labels:
दूरदर्शन,
aakashwani,
ADASA,
ARTEE,
ashwini,
prasar bhaarati,
TEA
शनिवार, 4 अक्टूबर 2008
वोइस ऑफ अमेरिका का हिन्दी प्रसारण बंद
वोइस ऑफ अमेरिका ने ३० सितम्बर से हिन्दी में प्रसारण करना बन्द कर दिया, पर हिन्दी जगत में यह कोई महत्त्वपूर्ण खबर नहीं बन सकी है। आज जबकि भारत और अमेरिका के रिश्ते प्रगाड होते जान पड रहे हैं और अमेरिका अपनी दुनिया के दरवाजे भारत के लिए खोलने के लिए बेताब दिखाई दे रहा है, अमेरिका का यह कदम दिमाग में संशय तो पैदा करता ही है।
आखिर ऐसे कौनसे कारण हो सकते हैं जिनके चलते अमेरिका ने यह कदम उठाया है?
कहा जा रहा है कि इस ग्लोबल युग में जबकि दुनिया में संपर्क एवं सूचना प्राप्ति के साधनों की बहुतायत हो गयी है, इस तरह के रेडियो प्रसारणो की जरूरत खत्म हो गयी है, जो कि इतना उचित कारण नज़र नहीं आता है। मेरी नजर में यह अमेरिकी बाजारवाद की प्रवृत्ति को ही दर्शाता है क्योकि अब अमेरिका से भारत के बाजारू रिश्ते काफी ठीक हो चुके हैं और अमेरिका को अब इसकी और जरूरत नहीं रह गयी है।
बन्द करने के पीछे धन भी कारण नहीं हो सकता है क्योंकि ऐसे प्रसारणों के लिए अमेरिका को कुछ विशेष खर्च नहीं करना पड्ता.
आप भी अपने विचार यहाँ लिखें .
आखिर ऐसे कौनसे कारण हो सकते हैं जिनके चलते अमेरिका ने यह कदम उठाया है?
कहा जा रहा है कि इस ग्लोबल युग में जबकि दुनिया में संपर्क एवं सूचना प्राप्ति के साधनों की बहुतायत हो गयी है, इस तरह के रेडियो प्रसारणो की जरूरत खत्म हो गयी है, जो कि इतना उचित कारण नज़र नहीं आता है। मेरी नजर में यह अमेरिकी बाजारवाद की प्रवृत्ति को ही दर्शाता है क्योकि अब अमेरिका से भारत के बाजारू रिश्ते काफी ठीक हो चुके हैं और अमेरिका को अब इसकी और जरूरत नहीं रह गयी है।
बन्द करने के पीछे धन भी कारण नहीं हो सकता है क्योंकि ऐसे प्रसारणों के लिए अमेरिका को कुछ विशेष खर्च नहीं करना पड्ता.
आप भी अपने विचार यहाँ लिखें .
Labels:
दूरदर्शन,
प्रसारण,
हिन्दी,
aakaashwani,
air,
america,
ashwini,
bhaarat,
dd,
India,
prasar bhaarati,
Voice ऑफ़ america
सदस्यता लें
संदेश (Atom)