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शनिवार, 29 अगस्त 2009

प्रसार भारती में कर्मचारी संगठनों की भूमिका

पिछले १० वर्षों में प्रसार भारती में मुख्य रूप से कार्यरत कर्मचारी संगठन आरती, टी, जी ई ऐ, अदासा, पीएसए आदि के तथाकथित नेताओं ने अभी तक निहित स्वार्थों के चलते कभी भी कर्मचारियों के हित में नहीं सोचा है। प्रसार भारती में कर्मचारी संगठनों के इन तथाकथित नेताओं ने कर्मचारियों के बजाए अपना ही भला करने में ज़्यादा ध्यान दिया है।

इन संगठनों के ये तथाकथित नेता ज़्यादातर अपने प्रियजनों के स्थानान्तरण को व्यवस्थित करने में ही व्यस्त रहते हैं और आम कर्मचारियों के हितों की परवाह करने का समय उनके पास बचता ही नहीं है, और जब समय मिलेगा ही नहीं तो फिर कर्मचारी हित की बात कब और किससे करेंगे, क्योंकि इनके आसपास तो उन चापलूसों की फौज इकठ्ठी है जो उनकी हाँ में हाँ मिलाने के सिवाय और कुछ करती ही नहीं! क्योंकि इन नेताओं और इनके चापलूसों का एक ही मकसद है येन-केन-प्रकारेण दिल्ली या जो जिस स्थान पर है, में बने रहना।

और तो और, सभी सगठनों ने कर्मचारियों के सामान्य एवं कॉमन विषयों जैसे जी पी एफ और वेलफेयर सम्बन्धी समस्याओं पर भी वर्षों से ध्यान नहीं दिया है।

अब जीपीएफ विभाग की बातचल ही पड़ी है तो इसी की बात करते हैं, क्योंकि, सभी समान रूप से इस विभाग के सताए हुए हैं। जीपीएफ विभाग में तो हाल ये है की एक ही लिस्ट में भेजे गए कर्मचारियों में से कई कर्मचारियों की जी पी एफ सम्बन्धी प्रविष्टियाँ ही गायब हो जाती हैं, इस बात का पता कर्मचारियों को तब चलता है जब एक या अधिक वर्ष बाद उसे स्टेटमेंट मिलता है, फिर शुरू होता है जी पी एफ ऑफिस में चक्कर लगाने का अंतहीन सिलसिला जो तब ही ख़तम होता है जब कर्मचारी जी पी एफ विभाग में अच्छी तरह से सेवा पूजा हेतु भेंट या चढावा चढा देता है या उच्च अधिकारीयों के पास चला जाता है, पर उच्चाधिकारियों के पास जाना कई बार उन्हें नई उलझनों में भी फंसा देता है। सबसे ज़्यादा परेशानी तो दूर दराज़ के इलाकों में काम करने वाले हमारे सहयोगियों को होती है।


जी पी एफ विभाग को आन लाइन करने की मांग कर्मचारियों द्वारा एक अरसे से की जा रही है पर कोई भी संगठन इस बारे में सोचना भी नहीं चाहता है। सोचे भी कैसे सोचने के लिए वक़्त चाहिए, जो फालतू काम करने में ही जाया हो जाता है, और फ़िर वैसे भी चुनाव में इन मुद्दों की बात तो होती भी नहीं है न, तो फ़िर क्यों इन 'फालतू' के कामों में अपना सर खपाया जाए।


ये तो बानगी भर है, ऐसे बीसियों मुद्ददे हैं जो सभी कर्मचारियों को समान रूप से प्रभावित करते हैं, पर उनके लिए इन तथाकथित नेताओं के पास समय ही नहीं है। ऐसे नेताओं से कर्मचारी वेलफेयर की उम्मीद करना ही बेमानी है। हाल ही में वेतन आयोग की सिफारिशों को पूरी तरह लागू करवाने में इन संगठनों का विफल रहना इनके कार्य करने के तौर तरीकों को ही दर्शाता है।

इन नेताओं द्वारा किए गए फैसले और उठाये गए कदम अधिकतर अदूरदर्शितापूर्ण ही रहे हैं। आज इन्हीं अदूरदर्शी नीतियों के चलते प्रसार भारती में कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय हो गया है।

इनकी अदूरदर्शितापूर्ण नीतियों का खुलासा अब अगले अंक में ।

-- अश्विनी कुमार