रविवार, 20 सितंबर 2009

आकाशवाणी और दूरदर्शन के कर्मचारी नेताओं की अदूरदर्शी सोच - 1

प्रिय मित्रों,

पिछले अंक (
यहाँ पढें ) में हम बात कर रहे थे हमारे यहां कार्य कर रहे कर्मचारी संगठनों की कार्यप्रणाली की, उनकी अदूरदर्शिता पूर्ण नीतियों की पर , समयाभाव के कारण चर्चा अधूरी ही रह गयी थी और हम इनकी अदूरदर्शी नीतियों के बारे में बात ही नहीं कर पाये थे।

मैं इनकी अदूरदर्शी नीतियों पर आपसे चर्चा करता, उससे पहले ही पिछले दिनों इन तथाकथित नेताओं की आपसी होड़ और अदूरदर्शिता का एक और नायाब नमूना भी देखने को मिल गया।

पद लिप्सा और क्रेडिट लेने की कोशिशों के चलते हाल ही में एमऐसीपी के नाम पर जो कुछ हुआ और हो रहा है वह वास्तव में इन तथाकथित नेताओं के निहित स्वार्थों की पराकाष्ठा को ही दर्शाता है। कुछ संगठनों के समूह टूट गए और कुछ नए बन गए और फिर बाद में कुछ एक दूसरे का सहारा भी लेते देखे गए, मूल रूप से इन संगठनो की अगुआई, हमारे इंजीनियरिंग संगठन ही कर रहे थे, पर शायद ही किसी ने यह जानने की जहमत उठाई कि आख़िर सिर्फ़ एमऐसीपी लेकर इंजीनियरिंग केडर में किसका भला होने वाला है और हमें वास्तव में हासिल क्या होगा ?

होना तो ये चाहिए था की सभी संगठन तथा नेता पहले केडर रिस्ट्रक्चरिंग (जो सैद्धांतिक रूप से करीब करीब स्वीकृत ही है) को करवाते और फिर ऐ सी पी को लागू करवाने की कोशिश उसके बाद एमएसीपी लागू करवाने की बात होती । वर्षों से यह काम इन्हीं 'महानुभावों' की वज़ह से पूर्ण नहीं हो पा रहा है, पर सोचने की फुर्सत किसे है? यहाँ तो होड़ ये मची है कि काम होने का क्रेडिट कोई और न ले उडे। जबकि सच्चाई यह है कि यह सब ( पे कमीशन) तो आगे पीछे लागू होना ही है क्योंकि यह मिनिस्ट्री का निर्णय है बस फर्क इतना ही है कि कहीं लागू जल्दी हो गया है और कहीं अब लागू होगा। प्रसार भारती में पे कमीशन लागू करवाने के बारे में भी, यहीं पर वह सच भी उजागर किया जाएगा जिसका दम ये संगठन भरते हैं पर, अभी बात चल रही है एम्ऐसीपी और केडर रिस्ट्रक्चरिंग के बारे में।

केडर रिस्ट्रक्चरिंग की बात तो हमारे ये तथाकथित नेता तब ही करेंगे जब हमारे इन संगठनों के चुनाव वापस सर पर होंगे, क्योंकि यही वह लोलीपोप है, जो चुनाव नज़दीक होने पर ये कर्मचरियों को उसी तरह थमा देते हैं, जैसे हमारी चुनी हुई सरकारें हर चुनाव में मंहगाई कम करने का लोलीपोप जनता को थमा देती हैं । इस कार्य से भटकाने का काम भी हमारे ही इन्जिनीरिंग केडर के दूसरे संगठन ही कर रहे हैं। वास्तव में इन नेताओं के पास हमारे उत्थान के लिए कोई नीति ही नहीं है, हो भी कैसे जब इन्हे फालतू के कामों (अपने लोगों के ट्रान्सफर ) से फुर्सत तो मिले।

केडर रिस्ट्रक्चरिंग में इंजीनियरिंग केडर में सीनियर टेक्नीशियन (Sr.Tech) एवं इऐ(EA) का तथा एसइऐ(SEA) एवं ऐइ(AE) का मर्जर प्रस्तावित है इसके अलावा प्रोमोशन चैनेल से ऐइ से सीधा एस इ की पोस्ट पर प्रोमोशन होना प्रस्तावित है , यदि केडर रिस्ट्रक्चरिंग लागू होने के बाद ऐसीपी लागू होती है, तो एम ऐ सी पी का कोई फायदा भी मिलाता । ऐसीपी लागू होने के बाद प्रोमोशन पर एक टेक्निशियन को पहले 'इऐ' और फिर 'ऐइ' की पोस्ट मिलती और अंत में वह 'एसइ' के ग्रेड तक पहुँचता। इसी प्रकार एक 'इऐ', 'एसजी इ' के ग्रेड तक पहुचने में कामयाब होता, परन्तु यह सब सोचने का समय तो आप के पास है ही नहीं, और इन तथाकथित नेताओं के पास तो बिल्कुल नहीं है, क्यों नहीं है यह मैं इस ब्लॉग के पिछले अंक (
यहाँ पढें )में बता ही चुका हूँ।

यदि आप इन्हें इस बारे में कहेंगे भी तो ये आपको कहेंगे - अरे भाई पहले जो मिल रहा है उसे तो ले लो , रिस्ट्रक्चरिंग का काम तो मुश्किल है, पता नहीं कब होगा तब तक जो हम दिलवा रहे हैं वो तो ले लो! और, हम सब मान जायेंगे, बस इस थोड़े से तात्कालिक लाभ के लिए हम सब अपने भविष्य के ताबूत में एक और कील ठोक देंगे, पता नहीं हम क्यों अपना भविष्य ख़ुद ही बरबाद करने पर तुले हुए हैं ?

आपको याद होगा नेफेड के नाम से एक संगठन जिसे मौकापरस्त नेताओं की जमात कहना ज्यादा उचित लगता है के बैनर तले आरती टी और अन्य कई संगठनों ने शुरुआत में हम लोगों के बारे में 'जी ओ एम' के डीम्ड डेपुटेशन के निर्णय पर खुशी जाहिर करते हुए तत्कालीन मंत्री महोदय को बधाई देकर फूलों का गुलदस्ता भेंट किया था। जो की इन नेताओं की दूरदर्शिता को स्पष्ट करने के लिए काफी है.

उस समय मात्र एक ही संगठन जिसका उल्लेख यहाँ जरूरी भी हो जाता है, उडी (UADEE) ने दूरदर्शिता दिखाते हुए इस निर्णय की भर्त्सना की थी। बाद में जब इन तथाकथित नेताओं को उडी द्वारा की गई इस भर्त्सना के चलते इस निर्णय के दूरगामी प्रभाव समझ में आए तो आनन फानन में गेट मीटिंग्स हुई और फिर ये दर्शाने कि कोशिश की गयी कि इन तथाकथित नेताओं कि सोच बड़ी ही दूरदर्शिता पूर्ण है।
अगले अंक में मैं आपको बताऊंगा कि इस मुद्दे पर असल में क्या हुआ और यह अब किस स्थिति में है और किसके प्रयासों से है।

शायद अब आपको उस गेट मीटिंग के बाद की अगली गेट मीटिंग भी याद आ गयी होगी जिसमें इन तथाकथित नेताओं ने साहबों के विरुद्ध एक (दिखावटी) मोर्चा खोलने कि बात कि थी क्योंकि अगले वर्ष होने वाले राष्ट्र मंडल खेलों के प्रसारणों के लिए दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के बजाए बाहर के रेडियो एवं टीवी चैनलों से निविदाएँ माँगी गयी थीं, पर फ़िर हुआ क्या ? कोई नहीं बताएगा।


मैंने इसीलिए पहले ही उसे कोष्ठक में दिखावटी लिखा है, क्योंकि वह प्रदर्शन तो था ही दिखावटी, यदि ये इस मामले को लेकर वास्तव में संजीदा होते तो प्रसार भारती बोर्ड के अध्यक्ष के द्वारा इसी मुद्दे पर दिए त्यागपत्र के समर्थन में न आ जाते, पर वास्तविकता में ये सारे तथाकथित नेता प्रसार भारती के साहबों की जेब में हैं तभी तो उस मुद्दे पर अध्यक्ष महोदय के साथ खड़े होने के बजे ये सब न केवल साहबों के साथ खड़े हो गए, बल्कि अन्दर कि खबरें तो ये तक हैं कि इन तथाकथित नेताओं ने उन्हें संगठनों के लेटरहेड पर क्लीनचिट भी दे दी थी, इस प्रकार हमारे विभाग का बंटाधार करने में लगे इन साहबों को कर्मचारियों का हितेषी बताने में भी इन्हें कोई संकोच नहीं हुआ। अब तो माननीया मंत्री महोदय ने भी इन साहबों के आचरण पर तल्ख़ टिप्पणी की है ( देखें दैनिक जागरण ११ सितम्बर २००९, नई दिल्ली - प्रसार भारती बोर्ड पर गिर सकती है गाज !)

अंततः यह सुनाने में आया है की इन खेलों के प्रसारण का दायित्व दूरदर्शन को नहीं मिल पाया है, आकाशवाणी का कोई कद्दावर प्रतिद्वंदी नहीं है शायद इसलिए रेडियो के प्रसारण के अधिकार शायद आकाशवाणी के पास ही रहेंगे।

तो मित्रों, ये तो थोड़े से वे नमूने हैं जो पिछले कुछ ही दिनों में घटित हुए हैं, पर दोस्तों कहानी तो अभी शुरू ही हुई है। पर समय काफी हो चला है, अगली बार कुछ और नई बातों और इन तथाकथित कर्ता धर्ताओं की कारगुजारियों और इन की नीतियों के बारे में मैं आपसे चर्चा करूँगा।

पर तब तक के लिए मैं इतना ही कहूँगा जो आज से करीब ११६ साल पहले ११ सितम्बर १८९३ में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में कहा था.... 'उत्तिष्ठ जाग्रत भवः'।

जागो साथियों जागो... ट्रांसफर से आगे भविष्य की भी सोचो... ये जो तनख्वाह आज आपको ज़्यादा लग रही है अगले आठ सालों में ऊंट के मुंह में जीरा साबित होगी इसलिए आने वाले कल की सोचो... जागो दोस्तों जागो।

आप भी अपने विचार यहाँ लिख सकते हैं। या ईमेल द्वारा भी मुझे अपने विचारों से अवगत करवा सकते हैं, परन्तु यहाँ लिखे आपके विचारों को और दूसरे लोगों को भी पड़ने का मौका मिलेगा।

आपका अपना,

अश्विनी कुमार, ई मेल - akvkota@gmail.com